न जाने ये कैसी हवा हो गई है बुझा के चराग़ों को वो सो गई है नदी जो बहुत बोलती थी हमेशा समुंदर में गिर के वो चुप हो गई है हाँ थी ख़ूबसूरत बला की मगर वो कहाँ जाने उस की हँसी खो गई है हमें रात देखे है मजबूर हो के रुलाने को आई थी ख़ुद रो गई है गली थी उसी दिल मोहल्ले में मेरी यहाँ इक इमारत खड़ी हो गई है दुआ दी थी उस ने जो लम्बी उम्र की सुनो वो दुआ बद-दुआ' हो गई है हक़ीक़त की दुनिया बड़ी बे-रहम है वो लौटेगी लड़की अभी जो गई है हाँ रखा था लिख के जो कहना था उस से बहार अब के आई तो सब धो गई है मेरी राह में फूल ही फूल हैं अब उसे बोने काँटे थे क्या बो गई है नई इक ग़ज़ल लिख के लाया तो था मैं यहीं तो रखी थी कहाँ खो गई है