न कर्ब-ए-हिज्र न कैफ़्फ़ियत-ए-विसाल में हूँ मुझे न छेड़िए अब मैं अजीब हाल में हूँ तमाम रंग-ए-इबारत में सोज़-ए-जाँ से मिरे मैं हुस्न-ए-ज़ात हूँ और मंज़िल-ए-जमाल में हूँ मिरा वजूद ज़रूरत है हर ज़माने की मैं रौशनी की तरह ज़ेहन-ए-माह-ओ-साल में हूँ अभी वसीला-ए-इज़हार ढूँढती है निगाह अभी सवाल कहाँ हसरत-ए-सवाल में हूँ मुझे न देख मिरी ज़ात से अलग कर के मैं जो भी कुछ हूँ फ़क़त अपने ख़द्द-ओ-ख़ाल में हूँ मैं जी रहा हूँ ये मेरा कमाल है 'हशरी' मैं अपने अहद की तहज़ीब के ज़वाल में हूँ