न कश्ती है न फ़िक्र-ए-ना-ख़ुदा है दिल-ए-तूफ़ाँ-तलब का आसरा है इलाही ख़ैर नामूस-ए-वफ़ा की उन्हें भी फ़िक्र-ए-नामूस-ए-वफ़ा है सुबुक-सारान-ए-साहिल जानते हैं दिल-ए-साहिल में क्या तूफ़ाँ बपा है नहीं ये नग़्मा-ए-शोर-ए-सलासिल बहार-ए-नौ के क़दमों की सदा है फ़रोग़-ए-माह क्या और कहकशाँ क्या ये मेरे माह-ए-नौ की ख़ाक-ए-पा है ज़माने की ग़ुलामी हम-नफ़स क्यूँ ज़माना आदमी की ख़ाक-ए-पा है शिकायत-हा-ए-सोज़-ए-तिश्नगी क्यूँ अभी 'साग़र' दर-ए-मय-ख़ाना-वा है