न ख़ुदा है न नाख़ुदा है कोई ज़िंदगी गोया सानेहा है कोई न तो बे-क़ुफ़्ल है दरीचा-ए-ज़ेहन न दर-ए-दिल खुला हुआ है कोई न मज़ा गुमरही में मिलता है न सँभलने का रास्ता है कोई मैं कि तन्हा था अब भी तन्हा हूँ फिर भी मुझ से बिछड़ गया है कोई ज़ात मत देख कर्ब-ए-ज़ात को देख कैसे अंदर से टूटता है कोई मुब्तला रूह के अज़ाब में हूँ कब से दिल को खुरच रहा है कोई जाने किस सुब्ह की तमन्ना में रात-भर शम्अ' साँ जला है कोई फ़ुर्सत-ए-ज़िंदगी बहुत कम है और बहुत देर आश्ना है कोई तुम भी सच्चे हो मैं भी सच्चा हूँ कब यहाँ झूट बोलता है कोई