न की जफ़ाओं में उस ने कोई कसर फिर भी लगे हुए थे उमीदों को मेरी पर फिर भी तुम्हारी याद से वाबस्ता है हयात मिरी किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी तुम अपने गिर्द फ़सीलें बना के बैठे हो हुआ तो होगा मिरी याद का गुज़र फिर भी चराग़ आँखों के वीरान होते जाते हैं तुम्हारी राह से उठती नहीं नज़र फिर भी तमाम रूप लिए चाँदनी चली आई हमारा दिल रहा तारीक एक घर फिर भी न रौशनी है कोई और न रास्ते मा'लूम चले हैं आज तिरे साथ बे-ख़तर फिर भी तमाम उम्र दिया मैं ने अपना ख़ून-ए-जिगर मिला न मुझ को कोई साया-ए-शजर फिर भी बहुत थी चाह दिल-ए-ना-तवाँ रुक जाए तवील होता गया उम्र का सफ़र फिर भी