न कोई हर्फ़-ए-दुआ अर्ज़-ए-तमन्ना भी नहीं अब न मौला है मेरा और मैं बंदा भी नहीं मेरे चेहरे से मिला करती है उस की सूरत उस की सूरत सा मिरे पास तो चेहरा भी नहीं रब्बी-अरनी का ये हासिल रहा बीनाई गई ऐसे देखा कि उसे ठीक से देखा भी नहीं पहले फ़िरऔन मरा बाद में मूसा भी मरे एक मर जाता है इक मौत से मरता भी नहीं ज़ात-ए-वाहिद है अगर वो तो मैं फ़र्द-ए-वहदत उस में और मुझ में कोई फ़र्क़ ज़ियादा भी नहीं ये तो इक खेल है और खेल बला का 'आलम' लैला का क़ैस नहीं क़ैस की लैला भी नहीं