न मैं दिल को अब हर मकाँ बेचता हूँ कोई ख़ूब-रू ले तो हाँ बेचता हूँ वो मय जिस को सब बेचते हैं छुपा कर मैं उस मय को यारो अयाँ बेचता हूँ ये दिल जिस को कहते हैं अर्श-ए-इलाही सो उस दिल को यारो मैं याँ बेचता हूँ ज़रा मेरी हिम्मत तो देखो अज़ीज़ो कहाँ की है जिंस और कहाँ बेचता हूँ लिए हाथ पर दल को फिरता हूँ यारो कोई मोल लेवे तो हाँ बेचता हूँ वो कहता है जी कोई बेचे तो हम लें तो कहता हूँ लो हाँ मियाँ बेचता हूँ मैं एक अपने यूसुफ़ की ख़ातिर अज़ीज़ो ये हस्ती का सब कारवाँ बेचता हूँ जो पूरा ख़रीदार पाऊँ तो यारो मैं ये सब ज़मीन-ओ-ज़माँ बेचता हूँ ज़मीं आसमाँ अर्श-ओ-कुर्सी भी क्या है कोई ले तो मैं ला-मकाँ बेचता हूँ जिसे मोल लेना हो ले ले ख़ुशी से मैं इस वक़्त दोनों जहाँ बेचता हूँ बिकी जिंस ख़ाली दुकाँ रह गई है सो अब इस दुकाँ को भी हाँ बेचता हूँ मोहब्बत के बाज़ार में ऐ 'नज़ीर' अब मैं आजिज़ ग़रीब अपनी जाँ बेचता हूँ