न पहुँच सका ज़माना मिरे हाल तक न पहुँचे मैं वहाँ हूँ जादा-पैमा कि ख़याल तक न पहुँचे जिन्हें तुझ को देखना हो वो मिरी नज़र से देखें ख़द-ओ-ख़ाल में जो उलझे वो जमाल तक न पहुँचे मिरा इंतिज़ार-ए-वा'दा तिरा ए'तिबार-ए-फ़र्दा शब-ओ-रोज़ रफ़्ता रफ़्ता मह-ओ-साल तक न पहुँचे जिन्हें तेरी आरज़ू थी जिन्हें तेरी जुस्तुजू थी किसी दाम में न आए किसी जाल तक न पहुँचे मिरे दिल की धड़कनों में हैं इन्हीं की आहटें सी मुझे जिन से ये गिला था मिरे हाल तक न पहुँचे मिरे रोज़-ओ-शब का आलम न समझ सकेंगे 'राही' जो ज़वाल से न गुज़रे जो कमाल तक न पहुँचे