न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक सुराग़-ए-ख़ूँ अब इस का मर के जाए ख़ाक गर्दन तक सर-ओ-सामाँ से हैं ये बे-सर-ओ-सामानियाँ अपनी कि है जोश-ए-जुनूँ मेरा गरेबाँ-गीर दामन तक न की ग़फ़लत से क़द्र-ए-दिल अबस इल्ज़ाम दिलबर पर मता-ए-ख़ुफ़्ता के जाने के सौ रस्ते हैं रहज़न तक ये हीला भी नहीं कम मौत के आने को गर आए न आए जो कि बालीं पर वो क्या जाएगा मदफ़न तक कुछ ऐसा इख़्तिलात आपस से उट्ठा इस ज़माने में न क़ातिल आए है मुझ तक न जाए मौत दुश्मन तक मिरी मेहनत का ज़ाएअ' होना ही तो इक क़यामत है कि बाद-ओ-बर्क़ आफ़त में रहेंगे मेरे ख़िर्मन तक वफ़ा की नज़्र है मेरी ही जान-ए-हसरत-आलूदा असर की क़द्र है मेरी ही आह-ए-क़ाफ़िला-ज़न तक ग़ुबार-ए-दिल किसी ढब से न क़ातिल का हुआ साबित कि साफ़ उस की हवा की तेग़ मुझ से मेरे कुश्तन तक मैं अपने हौसले से और वो अपने जामे से बाहर न ख़ंजर का उसे खटका न याँ सर्फ़ा है गर्दन तक नहीं होता रफ़ू चाक-ए-गरेबान-ए-फ़ना हरगिज़ मंगाईं चर्ख़-ए-चारुम से अगर ईसा की सोज़न तक गिराँ-जानी चमन में भी निशाना हो गई आख़िर कि बार-ए-दोश-ए-गुलबन है मिरी शाख़-ए-नशेमन तक 'क़लक़' मरता है और होता है मातम का ये हंगामा मगर रोना है इस का तू न आया बज़्म-ए-शेवन तक