न पूछो कौन हैं क्यूँ राह में नाचार बैठे हैं मुसाफ़िर हैं सफ़र करने की हिम्मत हार बैठे हैं इधर पहलू से वो उट्ठे उधर दुनिया से हम उट्ठे चलो हम भी तुम्हारे साथ ही बेकार बैठे हैं किसे फ़ुर्सत कि फ़र्ज़-ए-ख़िदमत-ए-उल्फ़त बजा लाए न तुम बेकार बैठे हो न हम बेकार बैठे हैं जो उट्ठे हैं तो गर्म-ए-जुस्तुजू-ए-दोस्त उट्ठे हैं जो बैठे हैं तो महव-ए-आरज़ू-ए-यार बैठे हैं मक़ाम-ए-दस्त-गीरी है कि तेरे रह-रव-ए-उल्फ़त हज़ारों जुस्तुजुएँ कर के हिम्मत हार बैठे हैं न पूछो कौन हैं क्या मुद्दआ है कुछ नहीं बाबा गदा हैं और ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार बैठे हैं ये हो सकता नहीं 'आज़ाद' से मय-ख़ाना ख़ाली हो वो देखो कौन बैठा है वही सरकार बैठे हैं