न पूछ क्यूँ मिरी आँखों में आ गए आँसू जो तेरे दिल में है उस बात पर नहीं आए वफ़ा-ए-अहद है ये पा-शिकस्तगी तो नहीं ठहर गया कि मिरे हम-सफ़र नहीं आए न छेड़ उन को ख़ुदा के लिए कि अहल-ए-वफ़ा भटक गए हैं तो फिर राह पर नहीं आए अभी अभी वो गए हैं मगर ये आलम है बहुत दिनों से वो जैसे नज़र नहीं आए कहीं ये तर्क-ए-मोहब्बत की इब्तिदा तो नहीं वो मुझ को याद कभी इस क़दर नहीं आए अजीब मंज़िल-ए-दिलकश अदम की मंज़िल है मुसाफ़िरान-ए-अदम लौट कर नहीं आए हफ़ीज़ कब उन्हें देखा नहीं ब-रंग-ए-दिगर 'हफ़ीज़' कब वो ब-रंग-ए-दिगर नहीं आए