न पूछो कैसे हिम्मत कर रहे हैं जो हम फिर से मोहब्बत कर रहे हैं न जाने क्या छुपाना चाहते हैं जो हम इतनी वज़ाहत कर रहे हैं यही बच्चे इमामत भी करेंगे जो मस्जिद में शरारत कर रहे हैं ख़ुशी में किस तरह निकलेंगे आँसू अभी आँसू रियाज़त कर रहे हैं हमारी ताज-पोशी मुल्तवी हो अभी तो लोग बै'अत कर रहे हैं मिरे आँगन में कुछ भूके परिंदे मुसलसल मेरी ग़ीबत कर रहें हैं कभी अज्दाद ने की थी बग़ावत लिहाज़ा हम हुकूमत कर रहे हैं