न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा हो के दुश्मन भी आश्ना न रहा बेवफ़ा जान-ओ-माल बे-सर्फ़ा क्या रहा जब कि दिल-रुबा न रहा सभी अग़्यार हैं सभी आशिक़ ए'तिमाद उस का एक जा न रहा ख़ाक था जिस चमन की रंग-ए-इरम पत्ते पत्ते का वाँ पता न रहा वस्ल में क्या विसाल मुश्किल था याद पर रोज़ हिज्र का न रहा ख़त मिरा वाँ गया गया न गया सर-ए-क़ासिद रहा रहा न रहा दिल में रहता है कौन ग़म के सिवा कोई इस घर में दूसरा न रहा ग़ैर और शिकवा-ए-जफ़ा तुम से हाए मैं क़ाबिल-ए-वफ़ा न रहा क्या हुआ क्यूँ 'क़लक़' को रोते हो कोई इस दहर में सदा न रहा