न रहबर ने न उस की रहबरी ने मुझे मंज़िल अता की गुमरही ने बना डाला ज़माने भर को दुश्मन फ़क़त इक अजनबी की दोस्ती ने वो क्यूँ मुहताज हो शम्स-ओ-क़मर का जिला बख़्शी हो जिस को तीरगी ने बदन काँटों से कर डाला है छलनी हमारा गुल-रुख़ों की दोस्ती ने बदल डाला मज़ाक़-ए-गुल-परस्ती चमन में अध-खिली सी इक कली ने क़यामत बन गई रहमत सरापा क्या किया आप की हम-साएगी ने शिकायत बर्क़ की ऐ 'बर्क़' कैसी? मुझे फूँका है गुल की पंखुड़ी ने