न सह सका जब मसाफ़तों के अज़ाब सारे तो कर गए कूच मेरी आँखों से ख़्वाब सारे बयाज़-ए-दिल पर ग़ज़ल की सूरत रक़म किए हैं तिरे करम भी तिरे सितम भी हिसाब सारे बहार आई है तुम भी आओ इधर से गुज़रो कि देखना चाहते हैं तुम को गुलाब सारे ये सानेहा है कि वाइ'ज़ों से उलझ पड़े हम ये वाक़िआ' है कि पी रहे थे शराब सारे भला हुआ हम गुनाहगारों ने ज़िद नहीं की समेट कर ले गया है नासेह सवाब सारे 'फ़राज़' किस ने मिरे मुक़द्दर में लिख दिए हैं बस एक दरिया की दोस्ती में सराब सारे