न सिर्फ़ ये कि ज़माने का ढब दिखाई दे ग़ज़ल तो वो है कि अंदर का सब दिखाई दे बदन की उस के कसावट ही क्या क़यामत है किसी लिबास में देखो ग़ज़ब दिखाई दे मैं अपनी ईद मना लूँ मुझे किसी से क्या न जाने फिर वो मिरा चाँद कब दिखाई दे मैं उस को देखूँ कुछ ऐसा कि देख भी न सकूँ वो अपने आप में छुप जाए जब दिखाई दे कोई बताए सहर को कहाँ तलाश करूँ जब आसमान भी बैरून-ए-शब दिखाई दे 'शकील' हुस्न-ए-तलब का मोआ'मला है वहाँ वो कामयाब है जो बे-तलब दिखाई दे