न सोचना कि ज़माने से डर गए हम भी तिरी तलाश में ग़ैरों के घर गए हम भी चुरा लीं हम से भी उस ख़ुद-परस्त ने आँखें दिल-ए-हबीब से आख़िर अगर गए हम भी पसीजा दिल न किसी का हमारे अश्कों से हर आस्ताँ पे लिए चश्म-ए-तर गए हम भी जो देखा कलियों को तुझ पर निसार होते हुए तो रंग बन के फ़ज़ा में बिखर गए हम भी जब उस की ज़ौक़-ए-नज़र का हुआ बहुत चर्चा वुफ़ूर-ए-शौक़ से एक दिन सँवर गए हम भी बहुत से इश्क़ की राहों में पुल-सिरात आए तुम्हारा नाम लिया और गुज़र गए हम भी मुहाल था कि हम ऐ 'जोश' ज़िंदा रह सकते फ़िराक़-ए-यार में इक रोज़ मर गए हम भी