न तो मैं हूर का मफ़्तूँ न परी का आशिक़ ख़ाक के पुतले का है ख़ाक का पुतला आशिक़ सख़्त-जानी से फ़क़त मैं ही रहा हूँ ज़िंदा मर गए वर्ना ग़म-ए-हिज्र से किया क्या आशिक़ सर्व-ओ-क़ुमरी गुल-ओ-बुलबुल हैं उसी के जल्वे आप माशूक़ है वो आप है अपना आशिक़ इश्क़-ए-कामिल में तो हाजत अमल-ए-हुब की नहीं क़ैस माशूक़ बना हो गई लीला आशिक़ बंद आँखें थीं अभी मुझ को जो लाया सय्याद न तो हूँ सर्व का वारफ़्ता न गुल का आशिक़ पहले ही कातिब-ए-तक़दीर ने लिक्खा था हमें तेरा बंदा तिरा फ़िदवी तिरा रुस्वा आशिक़ आरज़ू है मिरी मय्यत पे वो रोए कह कर है ये 'आजिज़' मिरा शैदा मिरा प्यारा आशिक़