न तू मिलने के अब क़ाबिल रहा है By Ghazal << न घूम दश्त में तू सेहन-ए-... आप को चेहरे से भी बीमार ह... >> न तू मिलने के अब क़ाबिल रहा है न मुज को वो दिमाग़ ओ दिल रहा है ये दिल कब इश्क़ के क़ाबिल रहा है कहाँ इस को दिमाग़ ओ दिल रहा है ख़ुदा के वास्ते इस को न टोको यही इक शहर में क़ातिल रहा है नहीं आता इसे तकिया पे आराम ये सर पाँव से तेरे हिल रहा है Share on: