न आरज़ू न कोई मुद्दआ' ज़रूरी है अब उन का और मिरा सामना ज़रूरी है जहाँ-जहाँ से ये गुज़रे हैं इश्क़ के मारे वहाँ वहाँ तो तिरा नक़्श-ए-पा ज़रूरी है तुझे मैं देख के फिर और किस को देखूँगा नज़र नज़र भी रहे अब ये क्या ज़रूरी है मक़ाम-ए-सब्र-ओ-रज़ा इम्तिहान-ए-दार-ओ-रसन हर इक के हिस्से में आए ये क्या ज़रूरी है दिल आश्ना-ए-मोहब्बत हुआ तो है लेकिन इस इब्तिदा की मगर इंतिहा ज़रूरी है जो दम है आज ग़नीमत है दोस्तो वर्ना हो इस के बाद मुलाक़ात क्या ज़रूरी है ये लखनऊ है तुम्हें कुछ ख़बर भी है 'ज़मज़म' किसी भी रंग में हो मर्सिया ज़रूरी है