न देखना था जो पैहम दिखाई देता है अजीब ख़ौफ़ का आलम दिखाई देता है ख़राबी तेरी नज़र में नहीं है दिल में है इसी लिए तो तुझे कम दिखाई देता है ये अब जो बाद-ए-सबा भी सुमूम जैसी है फ़लक ज़मीन से बरहम दिखाई देता है पतंगें उड़ने लगी हैं छतों पे चारों तरफ़ बहार आने का मौसम दिखाई देता है सभी की आँख नहीं होती देखने वाली किसी किसी को मिरा ग़म दिखाई देता है गुज़र गया है चमन से अभी अभी 'सय्यद' कि बर्ग-ओ-बार पे कुछ नम दिखाई देता है