न ख़ानक़ाहों के साए न ताज-ओ-तख़्त मुझे अता हुआ है फ़क़त धूप का दरख़्त मुझे वो संग-दिल प मुलाएम सा है दम-ए-गुफ़्तार मैं नर्म-दिल हूँ प लहजा मिला करख़्त मुझे तमाम उम्र की मेहनत पे फेर दे पानी दिखाए आँख जब अपने जिगर का लख़्त मुझे मिरे नसीब की तारीकियों से कम वाक़िफ़ समझ रही है ये दुनिया सितारा-बख़्त मुझे क़दम क़दम पे है यारों को सीम-ओ-ज़र की तलाश दुआ बुज़ुर्गों की अपने सफ़र का रख़्त मुझे हरी-भरी है बहुत फ़स्ल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न मेरी ये और बात ज़मीनें मिली हैं सख़्त मुझे