न सुने जब कोई फ़रियाद तो फ़रियाद न कर इज़्ज़त-ए-नफ़्स बड़ी चीज़ है बर्बाद न कर शिकवा-ए-जौर-ओ-तग़ाफ़ुल दिल-ए-नाशाद न कर वो तुझे भूल गया तू भी उसे याद न कर दम निकलता है निकल जाए बला से बुलबुल आशियाने के लिए मिन्नत-ए-सय्याद न कर खींच कर मुँह से ज़बाँ तोड़ के दोनों बाज़ू यूँ तो सय्याद गिरफ़्तार को आज़ाद न कर हम वफ़ा-केश वफ़ादार रहेंगे लेकिन ऐ जफ़ा-कोश जफ़ा कर मगर ईजाद न कर बाग़बाँ काश कहे फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ से इतना दौलत-ए-हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद को बर्बाद न कर आप के ख़ौफ़ हैं बे-लौस हैं जब बंदा-नवाज़ फिर ये क्यों कहते हैं 'शाग़िल' से कि फ़रियाद न कर