न थे रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ कल शब जहाँ मैं था बहारें थीं न था ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ कल शब जहाँ में था जहान-ए-साबित-ओ-सय्यार था गर्द-ए-सफ़र मेरी मिरे ज़ेर-ए-क़दम थी कहकशाँ कल शब जहाँ मैं था परी-पैकर निगारे सर्व-क़द्दे लाला-रुख़्सारे हसीं इक इक से बढ़ कर थे वहाँ कल शब जहाँ मैं था मोअद्दब सफ़-ब-सफ़ कर्रूबियाँ ताज़ीम देते थे सरीर-आरा थे शाह-ए-दो-जहाँ कल शब जहाँ मैं था अता-ए-अहल-ए-दिल है इस को अहल-ए-दिल समझते थे मैं पहूँचा किस तरह कैसे वहाँ कल शब जहाँ मैं था