न थी दीद की मुझ को ताब अव्वल अव्वल ग़ज़ब था किसी का शबाब अव्वल अव्वल किसे ताब-ए-नज़्ज़ारा अपने सिवा थी हुए थे वो जब बे-नक़ाब अव्वल अव्वल हमें सब ने राह-ए-मोहब्बत में छोड़ा जो थे हम-सफ़र हम-रिकाब अव्वल अव्वल मुक़द्दर उसी का है क़िस्मत उसी की जो हो इश्क़ में कामयाब अव्वल अव्वल ये क़िस्मत हमारी है ऐ माह-ए-ख़ूबी हुए दीद से फ़ैज़याब अव्वल अव्वल 'ज़ुहूर' आए दुनिया में जब मुल्क-ए-जाँ से रहे ख़ूब ख़ाना-ख़राब अव्वल अव्वल