ना यूँ भी झाँकिए सरकार इक समुंदर है कि मेरी आँखों के उस पार इक समुंदर है हमारी तिश्ना-दहानी बुझी है ख़ंजर से वो और हैं जिन्हें दरकार इक समुंदर है सफ़ीना-हा-ए-मोहब्बत को ग़र्क़ कर देगी ये जो है बीच में दीवार इक समुंदर है तुम आओ लौट के तुम को गले लगा लूँगा कि मेरा दिल भी मिरे यार इक समुंदर है निज़ाम-ए-शहर-ए-बहाराँ है किस के हाथों में जहाँ भी देखिए ख़ूँ-बार इक समुंदर है ग़ज़ल सुनाई जो सर्वत को मैं ने ऐ 'हाशिम' वो बोले सुन के सुख़न-कार इक समुंदर है