नाम तेरा भी रहेगा न सितमगर बाक़ी जब है फ़िरऔन न चंगेज़ का लश्कर बाक़ी अपने चेहरों को सियाही में छुपाने वालो नोक-ए-नेज़ा पे है सूरज सा कोई सर बाक़ी तेरे विर्से पे हैं ग़ासिब की उक़ाबी नज़रें ग़फ़लतों से नहीं रहते ये जवाहर बाक़ी इक सदफ़ सत्ह-ए-समंदर पे बहा जाता है और साहिल पे नहीं एक शनावर बाक़ी एक सफ़ हों तो बनें सीसा पिलाई दीवार हों अदू के लिए राहें न कहीं दर बाक़ी क़द्र कम होती है तक़्सीम जो होता है अदू हासिल-ए-जम्अ में बरकत है बराबर बाक़ी जाल फिर लाया है सय्याद फँसाने के लिए मिल के उड़ जाएँ परिंदे न रहे डर बाक़ी ज़ुल्म से सर को न टकराएँ तो फिर सज्दा करें हाँ पता है कि दर होगा न कहीं सर बाक़ी हम शहीदों को कभी मुर्दा नहीं कहते 'अनीस' रिज़्क़ जन्नत में मिले शान यहाँ पर बाक़ी