नादान होशियार बने जिन के रूप से वो भी झुलस गए हैं हवादिस की धूप से हमराह अजनबी के बहुत दूर तक गया चेहरा था मिलता जुलता ज़रा उन के रूप से कैसी हवा ये आई गुलिस्ताँ से गर्म गर्म क्या फूल शो'ले बन गए सावन की धूप से क्या क्या न हादसे मिरे दिल पर गुज़र गए लेकिन शगुफ़्तगी न गई रंग-रूप से 'वाजिद' उसे न मंज़िल-ए-मक़्सूद मिल सकी घबरा के रह गया जो मसाइब की धूप से