नदी की लय पे ख़ुद को गा रहा हूँ By Ghazal << ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-... तेरे कूचे की हुआ लग गई शा... >> नदी की लय पे ख़ुद को गा रहा हूँ मैं गहरे और गहरे जा रहा हूँ चुरा लो चाँद तुम उस सम्त छुप कर मैं शब को उस तरफ़ रिजहा रहा हूँ वो सुर में सुर मिलाना चाहती है मैं अपनी धुन बदलता जा रहा हूँ यही मौक़ा है ख़ारिज कर दूँ ख़ुद को मैं अपने आप को दोहरा रहा हूँ Share on: