नफ़रत की आँधियों को मोहब्बत में ढाल कर तन्हा खड़ी हूँ दश्त में रिश्ते सँभाल कर मुझ को तो तेरे दर्द भी तुझ से अज़ीज़ हैं बैठी हूँ देख प्यार से झोली में डाल कर ता'बीर ढूँडते हुए रस्ता भटक गईं ख़्वाबों समेत फेंक दीं आँखें निकाल कर शोहरत कमा रहे हो तुम अख़बार की तरह अपने पराए लोगों की पगड़ी उछाल कर इक ख़ुश-गुमान अक्स की बै'अत से पेशतर ख़ुश-बख़्त आइने से तो रिश्ता बहाल कर छाया हुआ है बाग़ में ख़ौफ़-ओ-हिरास क्यों सहमे हुए गुलाब हैं ख़ुशबू सँभाल कर या-रब कहाँ से लाते हैं ये लोग हौसला काँटों में फेंक देते हैं फूलों को पाल कर