नफ़स नफ़स है कि सहमा हुआ सा लगता है सुकूत-ए-शाम का साया घना सा लगता है चलो कि उस से भी कुछ देर गुफ़्तुगू कर लीं ये अजनबी तो मुसीबत-ज़दा सा लगता है यहाँ की ख़ाक से आती है बू-ए-दिल-दारी हर एक शख़्स मुझे आश्ना सा लगता है यक़ीन है कि वो मंज़िल मिलेगी ऐ 'दिलकश' अभी सफ़र तिरा सब्र-आज़मा सा लगता है