नफ़रत है हर्फ़-ए-वस्ल से अच्छा यूहीं सही लो आओ और बात सुनो वो नहीं सही छोड़ूँगा मैं न हाथ चले आओ साथ साथ नाज़ुक कलाई दुखती है तो आस्तीं सही मश्क-ए-जफ़ा के वास्ते किस की तलाश है कोई अगर नहीं है तो ये कम-तरीं सही इक़रार कर के घूरते हो क्यों मिरी तरफ़ बावर सही यक़ीन सही दिल-नशीं सही बेदाद कर के चाहते हो फिर जफ़ा की दाद बेहतर बजा दुरुस्त सहीह आफ़रीं सही सज्दे ही करते जाएँगे हम तेरी राह में है नक़्श-ए-पा से आर तो नक़्श-ए-जबीं सही बे-दिल-लगी भी 'दाग़' गुज़रनी मुहाल है वो दिल नहीं सही वो तमन्ना नहीं सही