नफ़रतें दिल से मिटाओ तो कोई बात बने प्यार की शमएँ जलाओ तो कोई बात बने आज इंसान ख़ुदा ख़ुद को समझ बैठा है इस को इंसान बनाओ तो कोई बात बने तीरगी बढ़ने लगी अपनी हदों से आगे मिशअलें दिन में जलाओ तो कोई बात बने मय-कदे में नज़र आते हैं सभी जाम-ब-दस्त मुझ को आँखों से पिलाओ तो कोई बात बने धर्म के नाम पे ख़ूँ कितना बहाओगे मियाँ प्यार के जाम लुंढाअो तो कोई बात बने मसअले ख़ून-ख़राबे से निपटते कब हैं प्यार से उन को मनाओ तो कोई बात बने हो जो दुनिया के लिए अम्न-ओ-सुकूँ का ज़ामिन ऐसा पैग़ाम सुनाओ तो कोई बात बने जिन के होंटों से हँसी छीन ली दुनिया ने 'अशोक' उन को सीने से लगाओ तो कोई बात बने