नफ़स की आमद-ओ-शुद को वबाल कर के भी वो ख़ुश नहीं है हमारा ये हाल कर के भी अजब था नश्शा-ए-वारफ़तगी-ए-वस्ल उसे वो ताज़ा-दम रहा मुझ को निढाल कर के भी हमें अज़ीज़ हमेशा रही है निस्बत-ए-ख़ाक ये सर झुका रहा कस्ब-ए-कमाल कर के भी लो हम न कहते थे हम को नहीं उमीद-ए-जवाब लो हम ने देख लिया है सवाल कर के भी ये एक उम्र पुरानी शराब है यारो ख़ुमार-ए-हिज्र रहेगा विसाल कर के भी उसी के नाम का सज्दा किया मुसल्ले पर उसी का ज़िक्र किया है धमाल कर के भी शराब दाना-ए-अँगूर से बराबर खींच पर एक कूज़ा कशीद-ए-ख़याल कर के भी