नग़्मा-ए-इश्क़ सुनाता हूँ मैं इस शान के साथ रक़्स करता है ज़माना मिरे विज्दान के साथ है मिरा ज़ौक़-ए-जुनूँ कुफ्र-ओ-ख़िरद की ज़द में ऐ ख़ुदा अब तो उठा ले मुझे ईमान के साथ दिल बना दोस्त तो क्या क्या न सितम उस ने किए हम भी नादाँ थे निभाते रहे नादान के साथ दाग़ माथे पे चले शैख़-ओ-बरहमन ले कर आए थे दैर-ओ-हरम तक बड़े अरमान के साथ ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-हालात 'शकील' क्या कहूँ कितनी बलाएँ हैं मिरी जान के साथ