नहीं ग़म गर ख़फ़ा सारा जहाँ है ख़ुदा का शुक्र है वो मेहरबाँ है यहाँ फ़रियाद की ताक़त कहाँ है वो नाहक़ अपने दिल में बद-गुमाँ है नहीं कुछ इश्क़ मोहताज-ए-बयाँ है हमारा हाल सूरत से अयाँ है नियाज़-ओ-नाज़ इश्क़-ओ-हुस्न देखो हमारा सर है उन का आस्ताँ है वफ़ादारी में गर बे-मिस्ल हैं हम सितम में वो भी यकता-ए-ज़माँ है हक़ीक़त में सितम-ईजाद तुम हो अबस कुछ जोश पर तब-ए-रवाँ है वज़ीफ़ा है मुझे तो नाम उन का कि हर-दम हिज्र में विर्द-ए-ज़बाँ है हमें तो हाल कहना मौत ठहरा तुम्हारे वास्ते इक दास्ताँ है यहाँ मैं हिज्र में घबरा रहा हूँ ख़ुदा मालूम वो इस दम कहाँ है हक़ीक़त में निगाहें कह रही हैं निहाँ जिस को समझते हो अयाँ है नज़र के साथ तुम भी फिर गए हो वो पहली सी मोहब्बत अब कहाँ है हमारे वास्ते है खेल मरना उन्हें गर क़त्ल आशिक़ का रवाँ है सुकून-ए-दिल कभी हासिल न होगा हमारे सर पे जब तक आसमाँ है अदू झिजका तो वो कहते हैं उस से चले आओ तुम्हारा ही मकाँ है कोई उतरा न इस के पार अब तक कि दरिया-ए-मोहब्बत बे-कराँ है वो कहते हैं मिरी तुर्बत पर आ कर ये मेरे कुश्ता-ए-ग़म का निशाँ है क़ज़ा आई है जो जाऊँ वहाँ पर मलक-उल-मौत उन का पासबाँ है तबीअ'त है वही अब भी हमारी मगर वो आप की उल्फ़त कहाँ है न 'हाजिर' को फ़क़त देहली का समझो कि अब वो शाइ'र-ए-हिन्दोस्ताँ है