नहीं घर में फ़लक के दिल-कुशाई कहाँ होती है यहाँ मेरी समाई करे जो बंदगी सो हो गुनहगार न्यारी है यहाँ की कुछ ख़ुदाई ज़बह करने कूँ नाहक़ बे-कसों के बता तेरी कमर ये किन कसाई तुम अपनी बात के राजा हो प्यारे कहीं सीं ज़िद तुम्हें हो है सिवाई चमन कूँ जीत आए नाज़ बू जब तुम्हारे सब्ज़ा-ए-ख़त नीं हराई सपीदी क़ंद की फीकी लगी जब तुम्हारे रंग की देखी गिराई बहा ख़ून-ए-जिगर अँखियों सें पल पल सजन बिन रात हम कूँ यूँ बहाई नहीं टिकने का पाँव 'आबरू' का गली की राह उस के हात आई