नहीं है अम्न का दुनिया में अब मक़ाम कोई ख़ुदा ख़ुदा कहे कोई कि राम राम कोई मिरे बनाए तो बनता नहीं है काम कोई वो कारसाज़ करे उस का इंतिज़ाम कोई न होगा बज़्म का बातों से इंतिज़ाम कोई ख़ुद अपनी बात पे तुझ को नहीं क़याम कोई तुम्हारे हो के जो हम ज़िल्लतें उठाते हैं ज़लील होगा किसी का न यूँ ग़ुलाम कोई उठाओ तेग़ सज़ा दो रक़ीब-ए-मुफ़सिद को नसीहतों से हुआ है कब इंतिज़ाम कोई छुरी से रहम करे पहले किस पर अब सय्याद कोई क़फ़स में तड़पता है ज़ेर-ए-दाम कोई ये मुझ से आँख मिलाता नहीं है क्यूँ साक़ी मिरे नसीब का शायद नहीं है जाम कोई जो नाम लेते हैं तेरा वो क़त्ल होते हैं नहीं मरेगा जो लेगा न तेरा नाम कोई कुछ और कीजिए तदबीर काम की 'राग़िब' कि हाए हाए से बनता नहीं है काम कोई