नहीं है इस नींद के नगर में अभी किसी को दिमाग़ मेरा मगर किसी ख़्वाब के सफ़र में सिपर करेंगे चराग़ मेरा सबाहत-ए-शम-ओ-आइना से हुई है मेरी नुमूद लेकिन सितारा ओ आसमाँ से बाहर कहीं मिलेगा सुराग़ मेरा तड़प उठी है किसी नगर में क़याम करने से रूह मेरी सुलग रहा है किसी मसाफ़त की बे-कली से दिमाग़ मेरा जराहत-ए-वस्ल ने खिलाए हैं ज़ुल्मत-ए-शाम में सितारे मता-ए-हिज्राँ की चाँदनी से भरा हुआ है अयाग़ मेरा लिपट रही है फ़सील की बुर्जियों से इक शहर की निगाहें और एक दीवार-ए-आईना पर झुका हुआ है चराग़ मेरा ये कैसी सतह-ए-रवाँ पे 'साजिद' धरी हुई है ज़मीन मेरी कि झूमता है किसी सितारे के साँस लेने से बाग़ मेरा