नहीं होने का ये ख़ून-ए-जिगर बंद न बाँधी आस्तीन आँखों पे तर बंद न पूछो बेबसी अपना है वो हाल असीर-ए-रिश्ता-बर-पा मुर्ग़-ए-पर बंद जुदा होता नहीं पहलू से दम-भर ये दाग़-ए-दिल है या कोई जिगर-बंद कहीं ऐसा न हो वो आ के फिर जाए किसी शब बंद हों आँखें न दर बंद यही क़ासिद पता है उस के घर का उधर जा जिस तरफ़ है रहगुज़र बंद ये चौसर इश्क़-बाज़ी की है ऐ दिल न चलना चाल वो जिस से हो घर बंद इजाज़त इक तड़प की दे जो सय्याद क़फ़स को ले उड़ें हम मुर्ग़-ए-पर-बंद ये हाल-ए-ना-तवानी है कि आँखें खुलीं जो एक दम तो दोपहर बंद नहीं ये पुतलियाँ ओ चश्म-ए-फ़त्ताँ तिरे घर में हैं दो फ़ित्ने नज़र-बंद मैं घबराता हूँ महरम से तुम्हारी खुले दिल की गिरह खोलो अगर बंद दुआ ये माँगता हूँ मैं शब-ए-वस्ल क़यामत तक रही बाब-ए-सहर बंद ख़ुदा जाने कहाँ हूँ और क्या हूँ खुले अहवाल क्या जब हो ख़बर बंद जो हाथ आएँ उसे ये दाना-ए-अश्क रही मुश्त-ए-सदफ़ मिस्ल-ए-गुहर-बंद लिखेगा हाल-ए-दिल ऐ 'बहर' कब तक बस अब वैफ़र लगा मक्तूब कर बंद