नहीं कहते किसी से हाल-ए-दिल ख़ामोश रहते हैं कि अपनी दास्ताँ में तेरे अफ़्साने भी आते हैं वो जिन पर फ़ख़्र है फ़र्ज़ानगी को नुक्ता-दानी को तिरी महफ़िल में ऐसे चंद दीवाने भी आते हैं अदब करता हूँ मस्जिद का वहाँ हर रोज़ जाता हूँ कि उस की राह में दो-चार मयख़ाने भी आते हैं हमारे मय-कदे में मय भी है ईमाँ की बातें भी यहीं तो एक साहब वा'ज़ फ़रमाने भी आते हैं न घबरा चाहने वालों से ये तो ऐन-ए-फ़ितरत है कि शम्अ' नूर-अफ़शाँ हो तो परवाने भी आते हैं