नहीं ख़याल तो फिर इंतिज़ार किस का है ये ज़ेहन-ओ-दिल ये बिला-वज्ह बार किस का है बताए कौन ये अहल-ए-ख़िरद से महफ़िल में चमन है किस के लिए ख़ार-ज़ार किस का है हमारा नाम तो ग़ैरों में हो गया शामिल जो लोग अपने हैं उन में शुमार किस का है किसी को दौलत-ए-दुनिया किसी को इज़्ज़त-ए-नफ़्स ख़ुदा की देन पे अब इख़्तियार किस का है उरूस-ए-मौत से जल्दी है किस को मिलने की क़दम बढ़ा हुआ ये सू-ए-दार किस का है फ़रिश्ते आ के 'वासिय्या' से बोले मरक़द में लहद में आप को अब इंतिज़ार किस का है