नहीं कि दिल में हमेशा ख़ुशी बहुत आई कभी तरसते रहे और कभी बहुत आई मिरे फ़लक से वो तूफ़ाँ नहीं उठा फिर से मिरी ज़मीन में वो थरथरी बहुत आई जिधर से खोल के बैठे थे दर अँधेरे का उसी तरफ़ से हमें रौशनी बहुत आई वहाँ मक़ाम तो रोने का था मगर ऐ दोस्त तिरे फ़िराक़ में हम को हँसी बहुत आई रवाँ रहे सफ़र-ए-मर्ग पर यूँही वर्ना हमारी राह में ये ज़िंदगी बहुत आई यहाँ कुछ अपनी हवाओं में भी उड़े हैं बहुत हमारे ख़्वाब में कुछ वो परी बहुत आई न था ज़ियादा कुछ एहसास जिस के होने का चला गया है तो उस की कमी बहुत आई न जाने क्यूँ मिरी निय्यत बदल गई यक-दम वगर्ना उस पे तबीअ'त मिरी बहुत आई 'ज़फ़र' शुऊ'र तो आया नहीं ज़रा भी हमें बजाए इस के मगर शाइरी बहुत आई