नहीं मिलता दिला हम को निशाँ तक मकाँ ढूँड आए उस का ला-मकाँ तक बना हर मू-ए-तन ख़ार-ए-मुग़ीलाँ सताया जोश-ए-वहशत ने यहाँ तक हमारी जान के पीछे पड़ा है दिल-ए-नादाँ को समझाएँ कहाँ तक रवाँ शब को हुआ क्या नाक़ा-ए-रूह नज़र आई न गर्द-ए-कारवाँ तक ज़मीं पे ज़लज़ला आया तो पहुँचा मिरे नालों का ग़ौग़ा आसमाँ तक मिले है दिल को ज़ौक़-ए-बोसा-ए-लब मज़ा है वर्ना हर शय का ज़बाँ तक जो रखते थे दिमाग़ अपना फ़लक पर ज़मीं पर अब नहीं उन का निशाँ तक जलाया शम्अ सा उस शोला-रू ने गए घुल सोज़-ए-ग़म से उस्तुखाँ तक जहाँ की सैर की 'सय्याह' हम ने न पहुँचे पर सुख़न के क़द्र-दाँ तक