नहीं ये बात कि पर्वाज़ का इरादा नहीं फ़ज़ा-ए-गुलशन-ए-हस्ती मगर कुशादा नहीं मिज़ाज-ए-इश्क़ तो अपना है ए'तिदाल-पसंद यही रविश है कभी कम नहीं ज़ियादा नहीं ख़िज़ाँ में भी मिरा नश्शा उतर नहीं सकता कि ये है जोश-ए-जुनूँ कोई जोश-ए-बादा नहीं शुऊर-ओ-फ़िक्र में आज़ाद है मिज़ाज मिरा मिरे बदन पे किसी और का लबादा नहीं निगाह चाहिए तहरीर हो ख़फ़ी की जली किताब-ए-ज़ीस्त का कोई वरक़ भी सादा नहीं रह-ए-हयात में दानिस्ता मिस्ल-ए-शम्अ' जले हमारी ज़ात का ईसार बे-इरादा नहीं न ज़ाद-ए-राह की ख़्वाहिश न राहबर की तलब हमारे वास्ते दुश्वार कोई जादा नहीं पड़ा जो वक़्त तो ग़ैरों ने मेरा साथ दिया मिरे शरीक मिरे अहल-ए-ख़ानवादा नहीं बिसात-ए-दहर पे क्या चाल कामयाब चले तिरी नज़र में अगर अज़्मत-ए-पियादा नहीं जहाँ में मिलने को मिलते हैं यूँ तो सब से 'लैस' मगर किसी से भी मक़्सूद इस्तिफ़ादा नहीं