नई ग़ज़लें लिखूँ किस के लिए और गीत सजाऊँ किस के लिए मिरा हम-दम मुझ से रूठ गया अब नग़्मे गाऊँ किस के लिए वो पास जो था तो उस के लिए औरों से भी लड़ना पड़ता था अब किस के लिए मैं किस से लड़ूँ और ख़ुद को जलाऊँ किस के लिए इक उस के तबस्सुम की ख़ातिर दुख-दर्द हज़ारों सहता था अब किस के लिए दुख-दर्द सहूँ और अश्क बहाऊँ किस के लिए वो था तो फ़क़त उस की ख़ातिर औरों से भी मिलना पड़ता था अब ऐसे वैसे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिए मैं उस के लिए ही सँवरता था और ख़ुद को सजाया करता था अब ख़ुद को संवारूँ किस के लिए और घर को सजाऊँ किस के लिए जब देस में कोई अपना था परदेस में कब जी लगता था अब किस के लिए घर याद आए और देस को जाऊँ किस के लिए उस का नहीं 'आरिफ़' कोई बदल ऐसा है वो मेरा जान-ए-ग़ज़ल अब उस के सिवा क्या याद रखूँ और उस को भुलाऊँ किस के लिए