नई तहज़ीब से बच्चों को बचाऊँ कैसे ख़ुद तो बिगड़ा हूँ ज़माने को बनाऊँ कैसे वो न देखे मेरी जानिब तो नहीं उस की ख़ता मैं अँधेरे में पड़ा हूँ नज़र आऊँ कैसे मेरे आँगन में तो आई ही नहीं मौज-ए-बहार कोई फूलों से भरा गीत सुनाऊँ कैसे चाहता तो हूँ कि देखूँ पस-ए-पर्दा क्या है दस्तरस जिस पे न हो उस को उठाऊँ कैसे पर निकलते ही कोई उस को कतर देता है अपने बच्चों को फ़ज़ाओं में उड़ाऊँ कैसे वक़्त महदूद दिया काम दिया ला-महदूद ज़िंदगी बोल तिरा क़र्ज़ चुकाऊँ कैसे जिस्म पर चोट लगी हो तो दिखाऊँ 'माहिर' दिल पे जो चोट लगी है वो दिखाऊँ कैसे