नई तर्ज़ों से मयख़ाने में रंग-ए-मय झलकता था गुलाबी रोती थी वाँ जाम हंस हंस कर छलकता था तिरे उस ख़ाक उड़ाने की धमक से ऐ मरी वहशत कलेजा रेग-ए-सहरा का भी दस दस गज़ थिलक्ता था गई तस्बीह उस की नज़्अ' में कब 'मीर' के दिल से उसी के नाम की सुमरन थी जब मुनक्का ढलकता था