नाज़ का मारा हुआ हूँ मैं अदा की सौगंद कुश्ता-ए-जौर-ओ-जफ़ा हूँ मैं वफ़ा की सौगंद ख़्वाह काफ़िर मुझे कह ख़्वाह मुसलमान ऐ शैख़ बुत के हाथों में बिकाया हूँ ख़ुदा की सौगंद कुछ ख़बर राह-ए-फ़ना की भी रखे है हम से कह दे ऐ ख़िज़्र तुझे आब-ए-बक़ा की सौगंद यार से ख़्वारी-ओ-रुस्वाई हमें बेहतर है ग़ैर की इज़्ज़त-ओ-हुर्मत से वफ़ा की सौगंद शम्अ की रौशनी सर कटने से होती है दो-चंद दर्द ही से मुझे हासिल है दवा की सौगंद उस की गर जान से मतलब नहीं तुझ को ऐ मियाँ छूटे क्यूँ खाता है हर दम तू 'रज़ा' की सौगंद