नाज़-ए-चमन वही है बुलबुल से गो ख़िज़ाँ है टहनी जो ज़र्द भी है सो शाख़-ए-ज़ाफ़राँ है गर इस चमन में वो भी इक ही लब-ओ-दहाँ है लेकिन सुख़न का तुझ से ग़ुंचे को मुँह कहाँ है हंगाम-ए-जल्वा उस के मुश्किल है ठहरे रहना चितवन है दिल की आफ़त-ए-चश्मक बला-ए-जाँ है पत्थर से तोड़ने के क़ाबिल है आरसी तू पर क्या करें कि प्यारे मुँह तेरा दरमियाँ है बाग़-ओ-बहार है वो मैं किश्त-ए-ज़ाफ़राँ हूँ जो लुत्फ़ इक इधर है तो याँ भी इक समाँ है हर-चंद ज़ब्त करिए छुपता है इश्क़ कोई गुज़रे है दिल पे जो कुछ चेहरे ही से अयाँ है इस फ़न में कोई बे-तह क्या हो मिरा मुआरिज़ अव्वल तो मैं सनद हूँ फिर ये मिरी ज़बाँ है आलम में आब-ओ-गिल का ठहराव किस तरह हो गर ख़ाक है अड़े है वर आब है रवाँ है चर्चा रहेगा उस का ता-हश्र मय-कशाँ में ख़ूँ-रेज़ी की हमारी रंगीन दास्ताँ है अज़-ख़वीश रफ़्ता उस बिन रहता है 'मीर' अक्सर रहते हो बात किस से वो आप में कहाँ है